Hindi kahani- भ्रम
best Motivational story in Hindi for Change your thoughts and life.
मां को तो यही आम था कि बेटियां तो पराई होती है, व्याह कर अपने घर चली जाएंगी। उनका बेटा ही बुढ़ापे का सहारा बनेगा। इसलिए ही मां ने बेटे और बेटी के बीच ऐसा भेद रखा कि रेखा और शोभा जबर्दस्त उपेक्षा का शिकार हुईं। बेटे विजय ने बुढ़ापे में अपनी बीमार मां को उसके हाल पर छोड़कर अकेली, निस्सहाय बना दिया। जब बेटियों को मां के बारे में पता चला तो वे ही उनका सहारा बनी। बेटे और बेटी के भेदभाव पर आधारित एक मार्मिक कहानी।
पति सुशील के ऑफिस और नीलू-रोहित के कॉलेज चले जाने के बाद रेखा अभी नाश्ता करने के लिए बैठी
ही थी कि उसके मोबाइल का रिंग टोन बज उठा। देखा तो स्क्रीन पर कोई अनजान नंबर था। उसने फोन रिसीव
किया, 'हैलो।' 'हां जी, आप दिल्ली से रेखा जी बोल रही हैं?' रेखा के हैलो कहते ही दूसरी तरफ से किसी महिला की आवाज आई।
'हां.. मैं रेखा बोल रही हूं। आप कौन...?'
'मैं इलाहाबाद से बोल रही हूं। आपकी मम्मी की तबीयत बहुत खराब है। वह आपसे मिलना चाहती हैं।' बस इतनी-सी सूचना देने के बाद फोन कट गया। रेखा ने पलट कर उस नंबर पर फोन लगाया, दूसरी तरफ से हैलो होते ही प्रश्न किया, 'आप कौन बोल रही हैं? क्या हुआ है मेरी मम्मी को?'
'आप की मम्मी पिछले दो महीने से बीमार चल रही हैं। उन्होंने आपका नंबर देकर मुझे खबर करने के लिए कहा था।' उधर से महिला ने कहा लेकिन अपने बारे में उसने कुछ नहीं बताया। रेखा बेचैन हो गई। मन में तमाम तरह की आशंकाएं उठने लगीं। अगर सचमुच मम्मी की तबीयत ज्यादा खराब है तो भाई ने क्यों नहीं फोन किया? यह अनजान महिला कौन थी?
कुछ देर ऊहापोह में रहने के बाद उसने मम्मी के पास जाने का निर्णय ले लिया। शाम को सुशील के ऑफिस से आते ही रेखा ने बताया, 'सुनो, आज खबर मिली है कि मम्मी की तबीयत बहुत खराब है। मैं उनसे मिलने के लिए तुरंत जाना चाहती हूं।' 'लेकिन अचानक? इतनी जल्दी रिजर्वेशन कहां मिलेगा? कल तत्काल में देखते हैं।' सुशील ने कहा।
'कोई बात नहीं...। मैं बगैर रिजर्वेशन के जनरल बोगी में ही चली जाऊंगी।' रेखा की मां के प्रति चिंता बढ़ती जा रही थी। 'अरे हां...! जनरल डिब्बे में घुसने तक को तो मिलेगा नहीं और तुम इलाहाबाद तक चली जाओगी?' सुशील ने शंका जताई। 'अब जैसे भी हो मुझे तो जाना ही है।
रेखा ने जिद की। 'तो ऐसा करो कल सवेरे की ट्रेन से चली जाओ लेकिन स्लीपर में बैठ जाना। टीटी बहुत करेगा तो पेनाल्टी लेकर टिकट बना देगा। शाम तक पहुंच जाओगी।' सुशील ने जाने की इजाजत दे दी। जैसा सुशील ने सुझाया था, रेखा ने वैसा किया। उसने सवेरे की ट्रेन पकड़ी। ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार से आगे की तरफ भागी जा रही थी लेकिन रेखा का मन स्मृतियों की डोर पकड़े पीछे जा रहा था। वह पचीस साल पहले चली गई।
तीन भाई-बहनों में वह सबसे बड़ी थी। लगभग आठ साल की वह, उससे तीन साल छोटी शोभा और उससे ढाई साल छोटा भाई विजय। मां उन दोनों बहनों और भाई के बीच हमेशा भेदभाव करती थीं। उन दोनों को आधा गिलास दूध मिलता तो विजय को मलाई पड़ा पूरा भरा गिलास।अबोध रेखा अकसर जिद पकड़ लेती थी कि विजय को चार बिस्किट मिले हैं तो वह भी चार ही लेगी, दो नहीं।
उसे विजय के बराबर चीजें तो नहीं मिल पाती थीं लेकिन मम्मी के ताने जरूर मिलते, 'बेहया...बेटे की बराबरी करने चली है। इन्हीं से वंश चलेगा? बुढ़ापे में यही काम आएगी जैसे। मरते समय मुंह में यही तुलसी-गंगाजल डालेगी जैसे। तब तो पता नहीं कहां रहेगी? मरने की खबर सुनेगी तो भी आएगी कि कोई बहाना बना देगी।'
उन दिनों रेखा की समझ में ये बातें बिल्कुल नहीं आती थीं। वह नहीं समझ पाती थी विजय लड़का होने के कारण अच्छा कैसे है और वह लडकी होने से खराब क्यों?
हां, पापा जरूर ऐसा नहीं करते थे। वे उन तीनों को बराबर प्यार करते थे। बल्कि उसे तो ऐसा लगता था कि पापा उसको बाकी दोनों के मुकाबले कुछ ज्यादा ही प्यार करते थे। पैसा हो या कोई खाने-पीने की चीज,
पापा सभी को बराबर-बराबर देते थे। लड़कियों के प्रति पापा का प्यार-दुलार देखकर मम्मी उनको भी चार बातें सुना देती थीं, हां...हां खूब सर चढ़ा लो...। कल को पराए घर जाकर नाक कटाएगी तब पता चलेगा।' अपने अतीत की यात्रा में खोई रेखा को पता ही नहीं चला कि दिल्ली से चले कितनी देर हुई है और ट्रेन कहां तक पहुंची है? वो तो उसका ध्यान तब भंग हुआ जब टीटी ने आकर पूछा, 'मैडम, आपका टिकट?'
'जी, मेरा जनरल टिकट है...। एकाएक जाना पड़ रहा है। आप बैलेंस लेकर स्लीपर का टिकट बना दीजिए।' रेखा ने कहा और पैसे देकर टिकट बनवा लिया। खिड़की के पार ताकती कुछ देर तक पीछे भागते पेड़ों, खेतों को देखती रही फिर उसका मन खुद पीछे भागने लगा। पापा असमय ही छोड़ गए थे। उनकी मृत्यु एक रोड एक्सीडेंट में हो गई थी। वो तो गनीमत थी कि तब तक उन दोनों बहनों की शादी हो चुकी थी और विजय बीए कर चुका था।
पापा के ही विभाग में उसे मृतक आश्रित कोटे से नौकरी मिल गई थी। पापा के फंड, इंश्योरेंस के पैसे तो मिले ही, मम्मी को पेंशन भी मिलने लगी थी। इसलिए किसी प्रकार की आर्थिक दिक्कत नहीं आई। धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य हो गया। मम्मी विजय की शादी के लिए यहां-वहां बात चलाने लगी थीं। तभी अचानक एक दिन मम्मी ने खबर भेजकर उन दोनों बहनों को तुरंत आने को कहा।
दोनों बहनें भागी-भागी पहुंची तो पता चला कि विजय यूनिवर्सिटी में अपने साथ पढ़ने वाली एक लड़की से शादी करने पर अड़ा है, मम्मी उसके लिए तैयार नहीं हैं। मम्मी के इंकार का मुख्य कारण था लड़की का विजातीय होना। लड़की वैश्य थी, जब कि रेखा के मायके वाले ब्राह्मण। उन दोनों बहनों को मम्मी ने विजय को समझाने के लिए बुलाया था। हर कोशिश करके देख लिया गया लेकिन विजय पर किसी के भी समझाने-बुझाने का असर नहीं हुआ।
उसका हठ देख रेखा और शोभा ने उल्टे मम्मी को ही समझाया कि वही समझौता कर लें। जिंदगी विजय को जीनी है। जिसके साथ चाहे, जैसे चाहे उसे अपने तरीके से जीने दें। लेकिन मम्मी अपनी जगह अड़ी रहीं। दोनों बहनों ने जितना बन पड़ा कोशिश करने के बाद अपने-अपने घर लौट गईं। बाद में पता चला कि विजय ने उसी लड़की के साथ कोर्ट में शादी कर ली।
ट्रेन लेट हो गई थी। इलाहाबाद पहुंचते-पहुंचते शाम हो गई। स्टेशन से रिक्शा लेकर रेखा घर पहुंची तो देखा कि
विजय ड्राइंगरूम में सोफे पर बैठा सिगरेट पी रहा था। उसके सामने वाले सोफे पर शीशा, कंघी, चिमटी लिए बैठी एक महिला अपने बाल संवार रही थी। रेखा समझ गई कि वह विजय की पत्नी है। रेखा को अचानक आया देख कर विजय हड़बड़ा गया,
'अरे दीदी आप.. अचानक..?
नमस्ते....' अपनी पत्नी की तरफ देख कर वह बोला,
'सीमा, ये बड़ी दीदी हैं... रेखा दीदी।'
'नमस्ते।' सीमा उसकी तरफ देखकर, दोनों हाथ जोड़
कर बोली और अपना शीशा, कंघा लेकर अंदर चली गई।
'मम्मी कहां हैं विजय...? उनकी तबीयत कैसी है?'
रेखा ने खड़े-खड़े ही पूछा।
'मम्मी ...? वो ऊपर हैं... अपने कमरे में।'
'ऊपर..? ऊपर भी बन गया है क्या?' रेखा ने चौंक
कर पूछा।
'हां उधर लॉन की ओर से ऊपर जाने के लिए सीढ़ियांहैं।
' विजय ने बताया तो रेखा अपना सूटकेस लिए सीढ़ियों की ओर बढ़ गई। ऊपर आकर रेखा ने देखा कि रजाई ओढ़े मम्मी बिस्तर में पड़ी थीं। उनका शरीर बुखार में तप रहा था। रेखा ने उनके तपते सर पर हाथ रखा तो वह फूट-फूट कर रोने लगीं। उनसे लिपट कर रेखा भी रो पड़ी। थोड़ी देर तक रो लेने के बाद जब दोनों सामान्य हुई तो मम्मी से बातचीत के पश्चात जो पता चला
उसका लब्बो-लुआब यही था कि उनके लाख विरोध के बावजूद विजय ने अपनी मनपसंद लड़की सीमा के साथ शादी कर ली थी। सीमा को पता था कि मम्मी उसकी शादी के खिलाफ थीं, इसलिए वह पहले से ही मम्मी के प्रति नफरत से भरी हुई थी। घर में आते ही उसने मम्मी को तरह-तरह से बुरी तरह परेशान करना शुरू कर दिया।
मम्मी का खाना-पीना, जीना दूभर हो गया। गनीमत थी कि पापा के मरने के बाद मिला पैसा मम्मी के खाते में था। इसलिए जब साथ रह पाना मुश्किल लगने लगा तो मम्मी ने ऊपर दो कमरे, किचेन और लैट्रिन-बाथरूम का सेट बनवा लिया और अलग रहने लगीं। गीता नाम की एक नौकरानी रोज सवेरे, शाम आकर झाडू-बुहारू कर जाती और उनके लिए दो रोटी बना कर रख जाती थी।
एक ही घर में रहने के बावजूद मां-बेटे में कोई संवाद नहीं था। मम्मी बीमार थीं लेकिन विजय को उनकी कोई परवाह नहीं थी। वह गीता के साथ डॉक्टर के यहां जाती थीं। उन्होंने गीता से ही कह कर रेखा को फोन कराया था। 'दीदी, हमें एक पार्टी में जाना है। लौटकर मिलते हैं।' विजय यह खबर देने के लिए ऊपर आया और अपनी पत्नी के साथ निकल गया। मम्मी को बीमार, असहाय हालत में देख रेखा चिंतित हो गई।
सवेरा होते ही उसने पति सुशील से बात की और उनकी रजामंदी के बाद मम्मी को अपने साथ चलने के लिए तैयार किया। विजय रात में शायद पार्टी से देर से लौटा था। सवेरे वह मिलने के लिए ऊपर आया तो रेखा ने विजय से कहा, 'विजय, मम्मी की तबीयत कुछ अधिक ही गड़बड़ दिख रही है। मैं कुछ दिनों के लिए इनको अपने साथ दिल्ली ले जाना चाहती हूं। शायद जगह बदलने से कुछ आराम मिले उन्हें।
'ठीक है, जैसा आप लोगों को सही लगे।' विजय ने इतनी सहजता से कहा, जैसे वह मम्मी से छुटकारा पाना चाहता है। रेखा ने एक टैक्सी की और मम्मी को लेकर दिल्ली आ गई। आने के बाद फोन पर सारा हाल बताया
हानी... तो जयपुर से शोभा भी आ गई। बेहतर इलाज और दोनों बेटियों की सेवा मिली तो मम्मी का स्वास्थ्य बहत जीवास्तव चमन तेजी से सुधरने लगा। दरअसल, उनकी बीमारी शरीर से अधिक मन की थी। उनको दवा से अधिक किसी के संग-साथ और प्यार के दो बोल की जरूरत थी।
एक दिन सवेरे चाय लेकर आई तो रेखा ने पाया कि मम्मी तकिया में मुंह छुपाए हिलक-हिलक कर रो रही थीं। देख कर वह परेशान हो गई। 'क्या हुआ मम्मी... आप रो क्यों रही हैं? क्या तकलीफ है आप को...?' रेखा बार-बार पूछती रही लेकिन मम्मी कुछ नहीं बोलीं बल्कि और जोर-जोर से रोने लगीं। रेखा ने आवाज देकर शोभा को बुलाया। दोनों बहनें मम्मी के अगल-बगल बैठ गईं।
उनके रोने की वजह पूछी। मम्मी काफी देर रोने के बाद खुलीं, 'मुझको कोई तकलीफ नहीं है बेटी, मैं तो अपनी करनी पर रो रही हूं। मैंने बचपन में तुम लोगों के साथ बहुत अन्याय किया है। मैं सोचा करती थी कि बेटियां तो पराई हैं, ब्याह कर चली जाएंगी। बेटा साथ रहेगा... बुढ़ापे का सहारा होगा... इसलिए तुम दोनों के हिस्से का प्यार भी मैं उस नालायक को ही देती रही। ये बातें ही जब-तब मेरे मन को कचोटती रहती हैं।'
'अरे मम्मी...आप भी कैसी बेमतलब की बातों को लेकर परेशान हो रही हैं। आप ही नहीं हर मां के मन में बेटी के
मुकाबले बेटे के प्रति कुछ अतिरिक्त स्नेह रहता है।' रेखा ने कहा। 'देखो, इलाहाबाद का मकान मेरे नाम से है। बैंक में कुछ पैसा भी है। मेरी इच्छा है कि मकान और पैसा तुम दोनों के नाम कर दूं।' मम्मी बोलीं।
'नहीं मम्मी... हरगिज नहीं। आप के आशीर्वाद से हम लोगों के पास जरूरत भर को काफी है। जितना है हम उतने में ही खुश हैं। आप के मकान और पैसे का हमें कोई लालच नहीं। विजय का हक विजय को मिलने दीजिए।' शोभा ने कहा।
'हां मम्मी, शोभा बिल्कुल ठीक कह रही है। आप क्या समझती हैं कि आपके मकान और पैसों के लालच में मैं
आपको अपने पास ले आई हूं। मां के लिए भले ही बेटे और बेटियां अलग-अलग होती हैं लेकिन बच्चों के लिए तो मां एक ही होती हैं न। हम बेटी हैं तो क्या हुआ, आपके प्रति हमारी उतनी ही जिम्मेदारी बनती है, जितनी कि विजय की। हम अपना फर्ज अदा कर रहे हैं।' रेखा ने जब ऐसे कहा तो मम्मी अपने दोनों हथेलियों में मुंह छुपा कर फफक पड़ीं।.
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best Motivational story in Hindi for Change your thoughts and life.
मां को तो यही आम था कि बेटियां तो पराई होती है, व्याह कर अपने घर चली जाएंगी। उनका बेटा ही बुढ़ापे का सहारा बनेगा। इसलिए ही मां ने बेटे और बेटी के बीच ऐसा भेद रखा कि रेखा और शोभा जबर्दस्त उपेक्षा का शिकार हुईं। बेटे विजय ने बुढ़ापे में अपनी बीमार मां को उसके हाल पर छोड़कर अकेली, निस्सहाय बना दिया। जब बेटियों को मां के बारे में पता चला तो वे ही उनका सहारा बनी। बेटे और बेटी के भेदभाव पर आधारित एक मार्मिक कहानी।
पति सुशील के ऑफिस और नीलू-रोहित के कॉलेज चले जाने के बाद रेखा अभी नाश्ता करने के लिए बैठी
ही थी कि उसके मोबाइल का रिंग टोन बज उठा। देखा तो स्क्रीन पर कोई अनजान नंबर था। उसने फोन रिसीव
किया, 'हैलो।' 'हां जी, आप दिल्ली से रेखा जी बोल रही हैं?' रेखा के हैलो कहते ही दूसरी तरफ से किसी महिला की आवाज आई।
ही थी कि उसके मोबाइल का रिंग टोन बज उठा। देखा तो स्क्रीन पर कोई अनजान नंबर था। उसने फोन रिसीव
किया, 'हैलो।' 'हां जी, आप दिल्ली से रेखा जी बोल रही हैं?' रेखा के हैलो कहते ही दूसरी तरफ से किसी महिला की आवाज आई।
'हां.. मैं रेखा बोल रही हूं। आप कौन...?'
'मैं इलाहाबाद से बोल रही हूं। आपकी मम्मी की तबीयत बहुत खराब है। वह आपसे मिलना चाहती हैं।' बस इतनी-सी सूचना देने के बाद फोन कट गया। रेखा ने पलट कर उस नंबर पर फोन लगाया, दूसरी तरफ से हैलो होते ही प्रश्न किया, 'आप कौन बोल रही हैं? क्या हुआ है मेरी मम्मी को?'
'आप की मम्मी पिछले दो महीने से बीमार चल रही हैं। उन्होंने आपका नंबर देकर मुझे खबर करने के लिए कहा था।' उधर से महिला ने कहा लेकिन अपने बारे में उसने कुछ नहीं बताया। रेखा बेचैन हो गई। मन में तमाम तरह की आशंकाएं उठने लगीं। अगर सचमुच मम्मी की तबीयत ज्यादा खराब है तो भाई ने क्यों नहीं फोन किया? यह अनजान महिला कौन थी?
'मैं इलाहाबाद से बोल रही हूं। आपकी मम्मी की तबीयत बहुत खराब है। वह आपसे मिलना चाहती हैं।' बस इतनी-सी सूचना देने के बाद फोन कट गया। रेखा ने पलट कर उस नंबर पर फोन लगाया, दूसरी तरफ से हैलो होते ही प्रश्न किया, 'आप कौन बोल रही हैं? क्या हुआ है मेरी मम्मी को?'
'आप की मम्मी पिछले दो महीने से बीमार चल रही हैं। उन्होंने आपका नंबर देकर मुझे खबर करने के लिए कहा था।' उधर से महिला ने कहा लेकिन अपने बारे में उसने कुछ नहीं बताया। रेखा बेचैन हो गई। मन में तमाम तरह की आशंकाएं उठने लगीं। अगर सचमुच मम्मी की तबीयत ज्यादा खराब है तो भाई ने क्यों नहीं फोन किया? यह अनजान महिला कौन थी?
कुछ देर ऊहापोह में रहने के बाद उसने मम्मी के पास जाने का निर्णय ले लिया। शाम को सुशील के ऑफिस से आते ही रेखा ने बताया, 'सुनो, आज खबर मिली है कि मम्मी की तबीयत बहुत खराब है। मैं उनसे मिलने के लिए तुरंत जाना चाहती हूं।' 'लेकिन अचानक? इतनी जल्दी रिजर्वेशन कहां मिलेगा? कल तत्काल में देखते हैं।' सुशील ने कहा।
'कोई बात नहीं...। मैं बगैर रिजर्वेशन के जनरल बोगी में ही चली जाऊंगी।' रेखा की मां के प्रति चिंता बढ़ती जा रही थी। 'अरे हां...! जनरल डिब्बे में घुसने तक को तो मिलेगा नहीं और तुम इलाहाबाद तक चली जाओगी?' सुशील ने शंका जताई। 'अब जैसे भी हो मुझे तो जाना ही है।
रेखा ने जिद की। 'तो ऐसा करो कल सवेरे की ट्रेन से चली जाओ लेकिन स्लीपर में बैठ जाना। टीटी बहुत करेगा तो पेनाल्टी लेकर टिकट बना देगा। शाम तक पहुंच जाओगी।' सुशील ने जाने की इजाजत दे दी। जैसा सुशील ने सुझाया था, रेखा ने वैसा किया। उसने सवेरे की ट्रेन पकड़ी। ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार से आगे की तरफ भागी जा रही थी लेकिन रेखा का मन स्मृतियों की डोर पकड़े पीछे जा रहा था। वह पचीस साल पहले चली गई।
तीन भाई-बहनों में वह सबसे बड़ी थी। लगभग आठ साल की वह, उससे तीन साल छोटी शोभा और उससे ढाई साल छोटा भाई विजय। मां उन दोनों बहनों और भाई के बीच हमेशा भेदभाव करती थीं। उन दोनों को आधा गिलास दूध मिलता तो विजय को मलाई पड़ा पूरा भरा गिलास।अबोध रेखा अकसर जिद पकड़ लेती थी कि विजय को चार बिस्किट मिले हैं तो वह भी चार ही लेगी, दो नहीं।
उसे विजय के बराबर चीजें तो नहीं मिल पाती थीं लेकिन मम्मी के ताने जरूर मिलते, 'बेहया...बेटे की बराबरी करने चली है। इन्हीं से वंश चलेगा? बुढ़ापे में यही काम आएगी जैसे। मरते समय मुंह में यही तुलसी-गंगाजल डालेगी जैसे। तब तो पता नहीं कहां रहेगी? मरने की खबर सुनेगी तो भी आएगी कि कोई बहाना बना देगी।'
उन दिनों रेखा की समझ में ये बातें बिल्कुल नहीं आती थीं। वह नहीं समझ पाती थी विजय लड़का होने के कारण अच्छा कैसे है और वह लडकी होने से खराब क्यों?
हां, पापा जरूर ऐसा नहीं करते थे। वे उन तीनों को बराबर प्यार करते थे। बल्कि उसे तो ऐसा लगता था कि पापा उसको बाकी दोनों के मुकाबले कुछ ज्यादा ही प्यार करते थे। पैसा हो या कोई खाने-पीने की चीज,
पापा सभी को बराबर-बराबर देते थे। लड़कियों के प्रति पापा का प्यार-दुलार देखकर मम्मी उनको भी चार बातें सुना देती थीं, हां...हां खूब सर चढ़ा लो...। कल को पराए घर जाकर नाक कटाएगी तब पता चलेगा।' अपने अतीत की यात्रा में खोई रेखा को पता ही नहीं चला कि दिल्ली से चले कितनी देर हुई है और ट्रेन कहां तक पहुंची है? वो तो उसका ध्यान तब भंग हुआ जब टीटी ने आकर पूछा, 'मैडम, आपका टिकट?'
'जी, मेरा जनरल टिकट है...। एकाएक जाना पड़ रहा है। आप बैलेंस लेकर स्लीपर का टिकट बना दीजिए।' रेखा ने कहा और पैसे देकर टिकट बनवा लिया। खिड़की के पार ताकती कुछ देर तक पीछे भागते पेड़ों, खेतों को देखती रही फिर उसका मन खुद पीछे भागने लगा। पापा असमय ही छोड़ गए थे। उनकी मृत्यु एक रोड एक्सीडेंट में हो गई थी। वो तो गनीमत थी कि तब तक उन दोनों बहनों की शादी हो चुकी थी और विजय बीए कर चुका था।
उन दिनों रेखा की समझ में ये बातें बिल्कुल नहीं आती थीं। वह नहीं समझ पाती थी विजय लड़का होने के कारण अच्छा कैसे है और वह लडकी होने से खराब क्यों?
हां, पापा जरूर ऐसा नहीं करते थे। वे उन तीनों को बराबर प्यार करते थे। बल्कि उसे तो ऐसा लगता था कि पापा उसको बाकी दोनों के मुकाबले कुछ ज्यादा ही प्यार करते थे। पैसा हो या कोई खाने-पीने की चीज,
पापा सभी को बराबर-बराबर देते थे। लड़कियों के प्रति पापा का प्यार-दुलार देखकर मम्मी उनको भी चार बातें सुना देती थीं, हां...हां खूब सर चढ़ा लो...। कल को पराए घर जाकर नाक कटाएगी तब पता चलेगा।' अपने अतीत की यात्रा में खोई रेखा को पता ही नहीं चला कि दिल्ली से चले कितनी देर हुई है और ट्रेन कहां तक पहुंची है? वो तो उसका ध्यान तब भंग हुआ जब टीटी ने आकर पूछा, 'मैडम, आपका टिकट?'
'जी, मेरा जनरल टिकट है...। एकाएक जाना पड़ रहा है। आप बैलेंस लेकर स्लीपर का टिकट बना दीजिए।' रेखा ने कहा और पैसे देकर टिकट बनवा लिया। खिड़की के पार ताकती कुछ देर तक पीछे भागते पेड़ों, खेतों को देखती रही फिर उसका मन खुद पीछे भागने लगा। पापा असमय ही छोड़ गए थे। उनकी मृत्यु एक रोड एक्सीडेंट में हो गई थी। वो तो गनीमत थी कि तब तक उन दोनों बहनों की शादी हो चुकी थी और विजय बीए कर चुका था।
पापा के ही विभाग में उसे मृतक आश्रित कोटे से नौकरी मिल गई थी। पापा के फंड, इंश्योरेंस के पैसे तो मिले ही, मम्मी को पेंशन भी मिलने लगी थी। इसलिए किसी प्रकार की आर्थिक दिक्कत नहीं आई। धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य हो गया। मम्मी विजय की शादी के लिए यहां-वहां बात चलाने लगी थीं। तभी अचानक एक दिन मम्मी ने खबर भेजकर उन दोनों बहनों को तुरंत आने को कहा।
दोनों बहनें भागी-भागी पहुंची तो पता चला कि विजय यूनिवर्सिटी में अपने साथ पढ़ने वाली एक लड़की से शादी करने पर अड़ा है, मम्मी उसके लिए तैयार नहीं हैं। मम्मी के इंकार का मुख्य कारण था लड़की का विजातीय होना। लड़की वैश्य थी, जब कि रेखा के मायके वाले ब्राह्मण। उन दोनों बहनों को मम्मी ने विजय को समझाने के लिए बुलाया था। हर कोशिश करके देख लिया गया लेकिन विजय पर किसी के भी समझाने-बुझाने का असर नहीं हुआ।
उसका हठ देख रेखा और शोभा ने उल्टे मम्मी को ही समझाया कि वही समझौता कर लें। जिंदगी विजय को जीनी है। जिसके साथ चाहे, जैसे चाहे उसे अपने तरीके से जीने दें। लेकिन मम्मी अपनी जगह अड़ी रहीं। दोनों बहनों ने जितना बन पड़ा कोशिश करने के बाद अपने-अपने घर लौट गईं। बाद में पता चला कि विजय ने उसी लड़की के साथ कोर्ट में शादी कर ली।
ट्रेन लेट हो गई थी। इलाहाबाद पहुंचते-पहुंचते शाम हो गई। स्टेशन से रिक्शा लेकर रेखा घर पहुंची तो देखा कि
विजय ड्राइंगरूम में सोफे पर बैठा सिगरेट पी रहा था। उसके सामने वाले सोफे पर शीशा, कंघी, चिमटी लिए बैठी एक महिला अपने बाल संवार रही थी। रेखा समझ गई कि वह विजय की पत्नी है। रेखा को अचानक आया देख कर विजय हड़बड़ा गया,
उसका हठ देख रेखा और शोभा ने उल्टे मम्मी को ही समझाया कि वही समझौता कर लें। जिंदगी विजय को जीनी है। जिसके साथ चाहे, जैसे चाहे उसे अपने तरीके से जीने दें। लेकिन मम्मी अपनी जगह अड़ी रहीं। दोनों बहनों ने जितना बन पड़ा कोशिश करने के बाद अपने-अपने घर लौट गईं। बाद में पता चला कि विजय ने उसी लड़की के साथ कोर्ट में शादी कर ली।
ट्रेन लेट हो गई थी। इलाहाबाद पहुंचते-पहुंचते शाम हो गई। स्टेशन से रिक्शा लेकर रेखा घर पहुंची तो देखा कि
विजय ड्राइंगरूम में सोफे पर बैठा सिगरेट पी रहा था। उसके सामने वाले सोफे पर शीशा, कंघी, चिमटी लिए बैठी एक महिला अपने बाल संवार रही थी। रेखा समझ गई कि वह विजय की पत्नी है। रेखा को अचानक आया देख कर विजय हड़बड़ा गया,
'अरे दीदी आप.. अचानक..?
नमस्ते....' अपनी पत्नी की तरफ देख कर वह बोला,
'सीमा, ये बड़ी दीदी हैं... रेखा दीदी।'
'नमस्ते।' सीमा उसकी तरफ देखकर, दोनों हाथ जोड़
कर बोली और अपना शीशा, कंघा लेकर अंदर चली गई।
'मम्मी कहां हैं विजय...? उनकी तबीयत कैसी है?'
रेखा ने खड़े-खड़े ही पूछा।
'मम्मी ...? वो ऊपर हैं... अपने कमरे में।'
'ऊपर..? ऊपर भी बन गया है क्या?' रेखा ने चौंक
कर पूछा।
'हां उधर लॉन की ओर से ऊपर जाने के लिए सीढ़ियांहैं।
नमस्ते....' अपनी पत्नी की तरफ देख कर वह बोला,
'सीमा, ये बड़ी दीदी हैं... रेखा दीदी।'
'नमस्ते।' सीमा उसकी तरफ देखकर, दोनों हाथ जोड़
कर बोली और अपना शीशा, कंघा लेकर अंदर चली गई।
'मम्मी कहां हैं विजय...? उनकी तबीयत कैसी है?'
रेखा ने खड़े-खड़े ही पूछा।
'मम्मी ...? वो ऊपर हैं... अपने कमरे में।'
'ऊपर..? ऊपर भी बन गया है क्या?' रेखा ने चौंक
कर पूछा।
'हां उधर लॉन की ओर से ऊपर जाने के लिए सीढ़ियांहैं।
' विजय ने बताया तो रेखा अपना सूटकेस लिए सीढ़ियों की ओर बढ़ गई। ऊपर आकर रेखा ने देखा कि रजाई ओढ़े मम्मी बिस्तर में पड़ी थीं। उनका शरीर बुखार में तप रहा था। रेखा ने उनके तपते सर पर हाथ रखा तो वह फूट-फूट कर रोने लगीं। उनसे लिपट कर रेखा भी रो पड़ी। थोड़ी देर तक रो लेने के बाद जब दोनों सामान्य हुई तो मम्मी से बातचीत के पश्चात जो पता चला
उसका लब्बो-लुआब यही था कि उनके लाख विरोध के बावजूद विजय ने अपनी मनपसंद लड़की सीमा के साथ शादी कर ली थी। सीमा को पता था कि मम्मी उसकी शादी के खिलाफ थीं, इसलिए वह पहले से ही मम्मी के प्रति नफरत से भरी हुई थी। घर में आते ही उसने मम्मी को तरह-तरह से बुरी तरह परेशान करना शुरू कर दिया।
मम्मी का खाना-पीना, जीना दूभर हो गया। गनीमत थी कि पापा के मरने के बाद मिला पैसा मम्मी के खाते में था। इसलिए जब साथ रह पाना मुश्किल लगने लगा तो मम्मी ने ऊपर दो कमरे, किचेन और लैट्रिन-बाथरूम का सेट बनवा लिया और अलग रहने लगीं। गीता नाम की एक नौकरानी रोज सवेरे, शाम आकर झाडू-बुहारू कर जाती और उनके लिए दो रोटी बना कर रख जाती थी।
मम्मी का खाना-पीना, जीना दूभर हो गया। गनीमत थी कि पापा के मरने के बाद मिला पैसा मम्मी के खाते में था। इसलिए जब साथ रह पाना मुश्किल लगने लगा तो मम्मी ने ऊपर दो कमरे, किचेन और लैट्रिन-बाथरूम का सेट बनवा लिया और अलग रहने लगीं। गीता नाम की एक नौकरानी रोज सवेरे, शाम आकर झाडू-बुहारू कर जाती और उनके लिए दो रोटी बना कर रख जाती थी।
एक ही घर में रहने के बावजूद मां-बेटे में कोई संवाद नहीं था। मम्मी बीमार थीं लेकिन विजय को उनकी कोई परवाह नहीं थी। वह गीता के साथ डॉक्टर के यहां जाती थीं। उन्होंने गीता से ही कह कर रेखा को फोन कराया था। 'दीदी, हमें एक पार्टी में जाना है। लौटकर मिलते हैं।' विजय यह खबर देने के लिए ऊपर आया और अपनी पत्नी के साथ निकल गया। मम्मी को बीमार, असहाय हालत में देख रेखा चिंतित हो गई।
सवेरा होते ही उसने पति सुशील से बात की और उनकी रजामंदी के बाद मम्मी को अपने साथ चलने के लिए तैयार किया। विजय रात में शायद पार्टी से देर से लौटा था। सवेरे वह मिलने के लिए ऊपर आया तो रेखा ने विजय से कहा, 'विजय, मम्मी की तबीयत कुछ अधिक ही गड़बड़ दिख रही है। मैं कुछ दिनों के लिए इनको अपने साथ दिल्ली ले जाना चाहती हूं। शायद जगह बदलने से कुछ आराम मिले उन्हें।
'ठीक है, जैसा आप लोगों को सही लगे।' विजय ने इतनी सहजता से कहा, जैसे वह मम्मी से छुटकारा पाना चाहता है। रेखा ने एक टैक्सी की और मम्मी को लेकर दिल्ली आ गई। आने के बाद फोन पर सारा हाल बताया
हानी... तो जयपुर से शोभा भी आ गई। बेहतर इलाज और दोनों बेटियों की सेवा मिली तो मम्मी का स्वास्थ्य बहत जीवास्तव चमन तेजी से सुधरने लगा। दरअसल, उनकी बीमारी शरीर से अधिक मन की थी। उनको दवा से अधिक किसी के संग-साथ और प्यार के दो बोल की जरूरत थी।
एक दिन सवेरे चाय लेकर आई तो रेखा ने पाया कि मम्मी तकिया में मुंह छुपाए हिलक-हिलक कर रो रही थीं। देख कर वह परेशान हो गई। 'क्या हुआ मम्मी... आप रो क्यों रही हैं? क्या तकलीफ है आप को...?' रेखा बार-बार पूछती रही लेकिन मम्मी कुछ नहीं बोलीं बल्कि और जोर-जोर से रोने लगीं। रेखा ने आवाज देकर शोभा को बुलाया। दोनों बहनें मम्मी के अगल-बगल बैठ गईं।
उनके रोने की वजह पूछी। मम्मी काफी देर रोने के बाद खुलीं, 'मुझको कोई तकलीफ नहीं है बेटी, मैं तो अपनी करनी पर रो रही हूं। मैंने बचपन में तुम लोगों के साथ बहुत अन्याय किया है। मैं सोचा करती थी कि बेटियां तो पराई हैं, ब्याह कर चली जाएंगी। बेटा साथ रहेगा... बुढ़ापे का सहारा होगा... इसलिए तुम दोनों के हिस्से का प्यार भी मैं उस नालायक को ही देती रही। ये बातें ही जब-तब मेरे मन को कचोटती रहती हैं।'
'अरे मम्मी...आप भी कैसी बेमतलब की बातों को लेकर परेशान हो रही हैं। आप ही नहीं हर मां के मन में बेटी के
मुकाबले बेटे के प्रति कुछ अतिरिक्त स्नेह रहता है।' रेखा ने कहा। 'देखो, इलाहाबाद का मकान मेरे नाम से है। बैंक में कुछ पैसा भी है। मेरी इच्छा है कि मकान और पैसा तुम दोनों के नाम कर दूं।' मम्मी बोलीं।
'अरे मम्मी...आप भी कैसी बेमतलब की बातों को लेकर परेशान हो रही हैं। आप ही नहीं हर मां के मन में बेटी के
मुकाबले बेटे के प्रति कुछ अतिरिक्त स्नेह रहता है।' रेखा ने कहा। 'देखो, इलाहाबाद का मकान मेरे नाम से है। बैंक में कुछ पैसा भी है। मेरी इच्छा है कि मकान और पैसा तुम दोनों के नाम कर दूं।' मम्मी बोलीं।
'नहीं मम्मी... हरगिज नहीं। आप के आशीर्वाद से हम लोगों के पास जरूरत भर को काफी है। जितना है हम उतने में ही खुश हैं। आप के मकान और पैसे का हमें कोई लालच नहीं। विजय का हक विजय को मिलने दीजिए।' शोभा ने कहा।
'हां मम्मी, शोभा बिल्कुल ठीक कह रही है। आप क्या समझती हैं कि आपके मकान और पैसों के लालच में मैं
आपको अपने पास ले आई हूं। मां के लिए भले ही बेटे और बेटियां अलग-अलग होती हैं लेकिन बच्चों के लिए तो मां एक ही होती हैं न। हम बेटी हैं तो क्या हुआ, आपके प्रति हमारी उतनी ही जिम्मेदारी बनती है, जितनी कि विजय की। हम अपना फर्ज अदा कर रहे हैं।' रेखा ने जब ऐसे कहा तो मम्मी अपने दोनों हथेलियों में मुंह छुपा कर फफक पड़ीं।.
'हां मम्मी, शोभा बिल्कुल ठीक कह रही है। आप क्या समझती हैं कि आपके मकान और पैसों के लालच में मैं
आपको अपने पास ले आई हूं। मां के लिए भले ही बेटे और बेटियां अलग-अलग होती हैं लेकिन बच्चों के लिए तो मां एक ही होती हैं न। हम बेटी हैं तो क्या हुआ, आपके प्रति हमारी उतनी ही जिम्मेदारी बनती है, जितनी कि विजय की। हम अपना फर्ज अदा कर रहे हैं।' रेखा ने जब ऐसे कहा तो मम्मी अपने दोनों हथेलियों में मुंह छुपा कर फफक पड़ीं।.
हेलो दोस्तों यदि आपको या Real life inspiring stories. यदि पसंद आई है तो प्लीज कमेंट में बताएं। कि आपको कैसी लगी और यदि आपको अच्छी लगी तो अपने दोस्तों और फैमिली वालों के साथ इस पोस्ट को शेयर। करें और इसी प्रकार की inspirational story पढ़ने के लिए आप मुझे फॉलो भी कर सकते हैं धन्यवाद।
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