धन का उपयोग Use of money
विदान धन के सदुपयोग की बात करते थे, किंतु एक धनी को लगता था कि वे विद्वान संत किसी के धनवान होने के ही विरुद्ध हैं।
एक बार की बात है। एक बहुत विद्वान संत थे। वे अपने
प्रवचन में धन की बहुत निंदा करते थे। वे प्रतिदिन अपने प्रवचन में ज्ञान की बातें किया करते थे। उनका ज्ञान व्यावहारिक हुआ करता था। सब लोग उनके प्रवचन
के प्रशंसक थे। उनका प्रवचन सुनने धनी, निर्धन आदि सभी वर्ग के लोग आया करते थे।
लोग उनके प्रवचन से ज्ञान प्राप्त करते थे और सभी शंकाओं का समाधान भी पूछते थे। किंतु वे जब भी धन संग्रह की निंदा करते तो धनिकों को बुरा लगता था। उन धनिकों में एक धनी को यह बात सबसे अधिक अखरती थी। अगले दिन प्रवचन के बाद उस धनिक ने एक हजार रुपए चढ़ाए।
विद्वान सहित सभी लोगों ने उसकी प्रशंसा की। तब धनिक ने विद्वान से कहा, 'महाराज, आप धन संग्रह को बुरा कहते हैं और यदि यह धन नहीं होता तो बताइए प्रशंसा किसकी होती।' विद्वान ने हंसकर प्रत्युत्तर दिया, 'यह प्रशंसा धन की नहीं हो रही है। यह तो आपके दान की प्रशंसा है।
धन तो आपके पास पहले ही था। धन का संग्रह कदापि
अच्छा नहीं है। धन का उपयोग ही उसकी महत्ता बताता है।' धनिक व्यक्ति को महात्मा की बात समझ में आ चुकी थी।
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