Motivational story:- बिटिया. शक्ति का उत्सव नज़दीक ही है। मैंने तो उसे बिटिया में देख भी लिया था।
प्रातः से ही आज शरीर - मन में एनर्जी सी लग रही थी। इसकी वजह बिटिया थी। इस बीमारी के भंवर से घर के सभी सदस्य, सम्भलकर, हौले-हौले किनारे तक पहुंच ही गए थे।
इच्छा हो रही थी कि बढ़िया होटल में जाकर खाना खाऊं, खिलाऊं सभी को मगर फिर इस ख्याली पुलाव को दिमाग से झटक दिया। पिछले कुछ आपातकालीन दिनों की यादें तो मन में लंबे समय तक रहेंगी।
वो मेरी आंखों की कई दिनों की तकलीफ, फिर लॉकडाउन के ख़तरों के बीच ऑपरेशन करवाना। फिर कुछ दिनों शरीर में अजीब सी कमजोरी लगने लगी थी। दो-चार दिन सोचता रहा, शायद आंखों के ऑपरेशन और गर्म दवाइयों से ऐसा हो रहा होगा।
यही कहकर मन को समझाता रहा। इस बीच बेटी वृंदा को भी तेज़ बुखार आने लगा था। हाथ-पैरों में दर्द भी था। हम सब समझे यह कोई मौसमी बुखार होगा मगर चैक करवाने पर जो रिपोर्ट आई उसे देखकर सिर घूमने लगा। वृंदा कोरोना पॉजिटिव निकली।
अब अगली चिंताएं बढ़ने लगीं थीं कि सभी को चैक करवाना अनिवार्य होगा। मन में चिंताएं बढ़ने लगीं थीं। अब तो अगले ही दिन सुबह से मैं अस्पताल पहुंचा और कोरोना के लिए टेस्ट करवाए। मेरा भी पाजिटिव निकला।
और मन में जो खटका था वही सामने आ गया। कोविड इंफेक्शन था मुझे। मुझे ज्यादा तकलीफ थी। सांस भर जाती थी थोड़ा भी चलने के बाद। और फिर दो-चार दिनों में सभी की कोरोना के लिए जांच हुई। सभी पॉजिटिव निकले।
ख़तरनाक और डरावनी स्थिति बन गई थी। सभी को कुछ दवाइयां और ऑक्सीमीटर दिए गए थे। समझाया गया था कि कैसे चैक करना है आक्सीजन लैवल। जैसा भी संभव था सबकी व्यवस्था हो गई। गनीमत है बेटी वृंदा की तबीयत सुधार पर थी।
बेटा राजीव बैंगलूरु से फोन पर फोन लगा कर पूछ रहा था कि क्या मैं आ जाऊं। मैंने उसे समझाया 'यहां आकर तुम भी परेशानी में पड़ सकते हो और अभी मुझे छोड़कर सभी चल फिर रहे हैं। तुमको तुरुप के इक्के के समान समझ रहा हूं।
जब भी परिस्थितियां दूभर लगने लगेंगी, तुमको बुला लूंगा।' इधर वृंदा का एक अलग ही रूप दिखाई पड़ रहा था मुझे। मैं सोच रहा था हम अपने बच्चों को हमेशा ही अंडर एस्टिमेट करते हैं, मगर उनकी काबिलियत कभी छुपती नहीं है।
वृंदा घर में इलाज करवाते हुए अस्पताल में फोन करके मेरे सब हालचाल जानना, डॉक्टर से बात करना, दवाओं की ख़बर रखना, सभी काम निपुणतापूर्वक निपटा रही थी।
मुझे कुछ दिनों में घर रहकर आराम करने की सलाह मिल गई थी। घर पर देखा वृंदा खुद के ऑफिस के ऑनलाइन कठिन काम निपटाने के अलावा, पूरे घर की व्यवस्था और अपनी वृद्ध-दादी की हर बात की चिंता रख
रही थी। ग़ज़ब एनर्जी लेवल और हौसले से हर तकलीफ का निवारण और हल निकाल रही थी। अब वृंदा समेत सबकी तबियत लगभग ठीक होती जा रही थी। पत्नी सृष्टि का थका सा चेहरा मुझे उद्वेलित करता था, मगर क्या हो सकता था।
खैर, अब सब पुरानी बातें छोड़ें।अब खुशियों का जश्न मनाने के दिन आ रहे हैं। मैंने वृंदा को आवाज लगाई मगर वो कुछ कर रही थी तो तुरंत नहीं आई। मैंने और जोर से पुकार लगाई और फिर लगभग डाटते से अंदाज़ में वृंदा को पुकारा।
और वृंदा ताली बजाती हुई आई ‘पापा बधाई हो आप अब पूरे अच्छे हो गए हो। मैंने सोच रखा था कि जिस दिन आप मुझे डांटकर बुलाओगे उस दिन आपको पूर्ण स्वस्थ हुआ मानूंगी। आज आपने मुझे चिल्लाकर बुलाया।
निकालो मिठाई के पैसे, भगवान को प्रसाद चढ़ाएंगे।' बिटिया की ख़ुशी-भरी पुकार से पूरे घर में खुशी की लहर दौड़ गई थी। ठंडी हवा का एक झोंका आया और सबको शीतल कर गया।
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