Hindi kahani:- मातृपूजा
सुविधाएं जुटाने से यह अहसास भी दिलाया जाता है कि कोई अहम है, उसकी जरूरतें महत्वपूर्ण हैं।एक तरह से यह भी सेवा है।
अधिकमास का महीना समाप्ति की ओर था। मौसम रोज बदल रहा था, कभी कुछ ठंडी हवा चलती थी और कभी बादल छाए रहने से उमस सी छाई रहती है। मगर - समय रुकता नहीं है। देखते ही देखते नवदुर्गा, मातृपूजन का दिन भी क़रीब आ रहा था।
मैं यहां एक उपनगर में रह रहा था। चार पांच साल हो गए थे। मैं एक दवा कंपनी में कार्यरत था। हम दो भाई थे, पिताजी गुजर चुके थे। मां और बड़े भैया पैतृक घर में ही रह रहे थे। भैया वकील थे। मां सालों साल से वहीं रहती आ रही थीं, इसलिए स्वाभाविक है,
उन्हें वहीं रहना ज्यादा अच्छा लगता था। दो-तीन बार मां को यहां आकर कुछ दिन हमारे साथ रहने का कहा था। एक बार आकर रही थीं मगर उनका मन यहां ज्यादा नहीं रमा। दो दिनों में ही उकता गईं थी मां। मैं सोचता रहता था कि ऐसा क्या करूं कि मां खुश हो जाएं और यहां मेरे पास भी आकर रहें।
पिछली बार यहां बुआ आई थीं। तब मैंने उनसे पूछा था कि मां का मन यहां क्यों नहीं लगता। यहां तो बहुत सारे पुराने मंदिर हैं और मां चामुंडा का मंदिर तो बहुत प्राचीन महत्व का है। तब बुआ ने बताया था मां को यहां कोई कष्ट नहीं है।
सिर्फ उनको यहां घर बंद-बंद सा लगता है। आसपास क्या हो रहा है इसकी आवाज भी नहीं आती, 5 उन्हें कुछ खुली जगह चाहिए बैठने की। और अब तो मां के घुटने भी ज्यादा नहीं मुड़ते हैं, सो उनके लिए स्नान व बाथरूम के लिए भी ज़रूरी इंतजाम हों, तो अच्छा।
इस साल फिर वही नवदुर्गोत्सव और दशहरा का समय आने ही वाला था। बच्चे इंतजार कर रहे थे इन दिनों का। उनके स्कूल तो इस बार खुले नहीं थे, सब ऑनलाइन पढ़ाई चल रही थी। कोरोना का असर, डर अब कुछ कम हो चला था।
मैंने बड़े भैया से आग्रह किया आप भी मां को लेकर दशहरे पर यहां आ जाओ। भैया अच्छे मूड में थे और सब प्रोग्राम तय हो गए कब आएंगे, क्या-क्या बनेगा, वगैरह।
मैंने कुछ सोचते हुए तीन-चार दिनों के अंदर ही नीचे के हॉल में सड़क की तरफ खुलती हुई एक बड़ी सी खिड़की बनवा ली और पुराने शौचालय को बदलकर कमोड लगवा दिया। गीजर और शावर भी लग गया, जिससे मां को सहूलियत हो।
अब हम त्योहारों पर भैया और मां का इंतजार बेसब्री से कर रहे थे। नवदुर्गा उत्सव शुरू होने के दो दिनों बाद सपरिवार बड़े भैया और मां आ गए थे। मैंने आते ही मां को वो सड़क की तरफ खुलती बड़ी-सी खिड़की दिखाई और वहीं रखी आराम कुर्सी भी।
और कहा 'मां, आपको अब कमरा बंद-बंद सा नहीं लगेगा। अब तो कुछ दिन यहां जरूर रुकना मां।' मैंने ध्यान नहीं दिया था, मगर बड़े भैया मेरी तरफ़ भावुक होकर देखे जा रहे थे। बोले, 'तू तो मुझसे भी बड़ा हो गया रे छोटे, असली मातृपूजा तो तूने की है।'
घर का माहौल सुंदर हो गया था। सब आराम से बैठे बतिया रहे थे और मां खिड़की के पास बैठकर दूर तक निहारते हुए पुराना कुछ सोच रही होंगी। इस बार नवदुर्गोत्सव, दशहरा पर्व अच्छे होने जा रहे थे। आने वाले दिन ख़ुशनुमा होने जा रहे थे।
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