हिन्दी लघुकथा- अभिलाषा
Best inspirational story in hindi
आदर्श, क्या बात है आज तुम बड़े परेशान दिख रहे हो? घर में सब ठीक तो है न दोस्त।' 'सदानंद वाकई मैं बहुत परेशान हूं। मेरी परेशानी के बारे में तुम्हें कैसे बताऊं?' 'तुम दोस्त मानते हो न मुझको, फिर अपनी परेशानी बताकर अपना मन हल्का क्यों नहीं कर लेते। जल्दी बताओ नहीं तो मैं चला।' कहते हुए सदानंद उठकर जाने लगा,
तो आदर्श ने उसका हाथ पकड़कर अपने पास बैठाकर कहा-'दोस्त, मेरी मां पिछले एक वर्ष से इसी शहर में मेरे बड़े भाई के पास रह रही थी। मैं उनसे साल भर से मिलने भी नहीं गया था। एक दिन अचानक भाई का फोन आया कि मां मुझसे मिलना चाहती है,
तो मैं उनसे मिलने चला गया। मुझे काफी समय बाद देख मां बहुत खुश हुई और मुझसे लिपटकर रो पड़ी साथ ही मेरे साथ चलने की जिद करने लगी। बड़े भाई ने मुझसे कहा कि मैं मां की इच्छानुसार उन्हें अपने साथ ले जाऊं। मेरी भाभी भी तुरंत मां का सामान पैक करके ले आई और मैं मां को अपने साथ अपने घर ले आया।
'तो फिर समस्या क्या है?' सदानंद ने आश्चर्य से पूछा। 'मेरी पत्नी और बच्चों को मां का साथ पसंद नहीं। वो बरामदे में नितांत अकेली बैठी रहती है। उनसे कोई बात तक नहीं करता। मेरी पत्नी तो यही चाहती है कि मैं मां को वापस बड़े भाई के पास छोड़ आऊं लेकिन बड़ी भाभी भी मां को साथ रखना नहीं चाहती है।
कहते हुए आदर्श की आंखें छलछला आईं। सदानंद ने आदर्श के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा-'दोस्त तुम्हारी परेशानी और मजबूरी को मैं समझ रहा हूं। मेरी बात सुन,मैंने अपनी मां को बचपन में ही खो दिया था। उनका अभाव आज भी महसूस कर रहा हूं। मैं तो घर में अकेला ही रहता हूं। बच्चे विदेश में हैं
और मेरी बीवी भी उनके साथ वहीं शिफ्ट हो गई हैं। तुम अपनी मां को मेरे पास छोड़ दो। मां की सेवा-सुश्रुषा का सौभाग्य आखिर ' किस्मत वालों को मिलता है। उनके लिए मैं सारी व्यवस्था कर दूंगा।
मुझको भी मां सेवा की अभिलाषा पूरी करने का अवसर दो। आदर्श सदानंद की आंखों में झांक रहा था और मन ही मन सोच रहा था कि उसकी बेबसी और मजबूरी का सदानंद की अभिलाषा ने पल भर में समाधान कर दिया था।
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